दृष्य चित्रों के अंतर्गत चित्रकार जीवन के ज्ञात प्रसंगों का एक प्रकार से संकलन करता है। यथार्थ के रूपाकार की इस प्रविधि में वह देखने वाले को अपनी दृष्टि भी एक प्रकार से देता है। जिस कोणए जिस दीठ से दृष्य का रूपांकन होता हैए कला आस्वाद की बाद में वही हमारी दृष्टि बन जाती है। पचास के दषक में कभी अमेरिका की रूबेन कलाविथी में ख्यात कलाकार अॅलेन काप्रो की एक प्रदर्षनी लगी थी। अमेरीकी घटनाओं को आधार बनाते प्रदर्षित उनके यह चित्र जीवन सदृष ही प्रतीत हो रहे थे। कहते हैंए वहीं से यथार्थ चित्रण शैली की एक नई धारा ‘घटना.निर्माणश् चित्र का भी विकास हुआ। पिछले दिनों स्वरूप विष्वास के चित्र जब देखे तो लगा घटना.निर्माण चित्र शैली के बरक्स वह एक नई यथार्थ चित्र तकनीक का अपने तई जैसे विकास कर रहे हैं। इस नई शैली में जीवन से जुड़े प्रसंगोंए अनुभूतियोंए क्रियाओं को छायाभाषी रूप प्रदान करते वह बहुधा देखे दृष्यों को आष्चर्यजनक स्पष्टता के साथ हमारे नेत्रों के निकट लाते हैं। दूरदृष्यलघुता में उनके चित्रों के नाटकीय प्रभाव मन को रोमांचित करते हैं और दृष्य को उसके पूरेपन में देखने की चाह भी अनायास ही जगाते हैं। वह ऊपर से नीचेए नीचे से ऊपर क्षेत्र जोड़कर अपने चित्रों में स्पेस के जरिए जैसे समय के अवकाष को पकड़ते हैं।
स्वरूप विष्वास मानवाकृतियां को केन्द्र में रखते हुए जीवन से जुड़ी सामान्य घटनाओंए प्रसंगों को अपने अंदाज में कैनवस पर परोटते हैं। खास बात है उनके चित्रों के दृष्य प्रभाव। उनके चित्र भू दृष्यों को ऊपर आकाष से देखने का अहसास लिए हैं। दूरदृष्यलघुता के उनके अधिकांष चित्र ऐसे हैं जिनमें दूरी के साथ आंख वस्तुओं के छोटे.बड़े आकार का अपने आप ही निर्धारण करती है। मानेए आंगन में यदि कुछ लोग बैठें हैं तो छत से बगैर उनको बताए उनकी गतिविधियों को कैमरे ने कैद कर लिया हो। ऐसा करते उनके चित्र में उभरी घटनाए प्रसंग हमारी स्मृति का हिस्सा बन जाती है। केवल देखने के समय ही नहीं बल्कि सदा के लिए।
बहरहालए मानव आकृतियों के कोलाज में स्वरूप के वे चित्र बेहद प्रभावी हैं जिनमें ताषए शतरंज और ऐसे ही दूसरे खेलों में मगन व्यक्तियों के समूह दिखाए गए हैं। वायलीन बजानेए गिटार बजाने में मगन व्यक्ति हों या फिर गमले की सार संभाल करती मां का चित्र.सभी में शबीह अंकन का उनका अंदाज भी सर्वथा अलग है। वह सीधे शबीह न बनाकर ऊपर से देखते जैसे उसका निर्माण करते हैं। चित्र संयोजन एवं चित्रण विधि में जीवन दर्षन की उनकी समझ भी अंतर्मन संवेदनाएं लिए है। अपनी अंतरभुत संवेदनाआंे में वह घटना.निर्माण का यह अहसास भी कराते हैं कि भौतिकता में तेजी से भागते जीवन में उसकी डोर हमारे हाथों से कहीं छूटती भी जा रही है। मुझे लगता हैए घटनाओं की स्थिरता में स्वरूप जीवन की गत्यात्मक्ता का अनूठा प्रवाह करते हैं।
स्वरूप के चित्र सादृष्य हैं। माने दर्पण में प्रतिबिम्ब। परस्पेक्टिव। इतने कि आप दूर तक के बहुत से दृसरे दृष्यों की भी इनमें खोज कर सकते हैं। चित्राकृतियां भले किसी खास प्रयोजन में रत हैं परन्तु उनमें संवेग है। एक खास तरह के कथ्य का संप्रेषण भी। प्राकृतिक रंगों की सूक्ष्मता को पकड़ते स्वरूप दृष्यों की सहज समझ विकसित तो करते ही हैंए कईं बार मैटेलिक में भी वह ऐसे प्रभाव डाल देते हैं कि चित्र अपनी समग्रता में मन को गहरे से छूता है। मसलन मैटेलिक रंग संयोजन का चाय के प्यालों के साथ ताष खेलती मानवाकृतियां का उनका परस्पेक्टिव एक चित्र चाह कर भी हम स्मृति से विस्मृत नहीं कर सकते। वह अपने चित्रों में दृष्य में भिन्न दूरगामी समतलों का निर्धारण करते विषय की गहराई में जाते हैं। आकाशीय दूरदृष्यलघुता में उनके चित्र कला की पृथक शैलीए पृथक तकनीक और चित्रांकन का अलग ढंग लिए है। कला की उनकी यही मौलिकता है।
(कला तट 21-1-2011)
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