शब्दों के घाव
चुन-चुन कर
फेंक दिए हमने
सभी अक्षर
अंधे कुओं में।
भाषा के चेहरे पर
इसी से लगे हैं
शब्दों के घाव।
शब्द-एक
शब्दों की नहीं होती
कोई अंतिम यात्रा
अलिखित और मौन में भी
शास्वत है
चरैवेति, चरैवेति।
शब्द-दो
नाप लेते हैं
शब्द
अरबों-खरबों
मीलो की दूरियां
पाट देते हैं
मन की
गहरी खुदी खाइयां।
औचक
भौचक करते
सप्रयास न बन सकने वाला
बना देते हैं
जब वे कोई वाक्यांश
अहसास कराने लगते हैं वे
बूझ ली हो जैसे उन्होंने
मन के भीतर की
अनसूलझी
हजारों-हजार पहेलियां।
शब्द सेतु है
जीवन का।
KAVITAEN ACHCHHI HAIN.
ReplyDeleteRajesh Ji,It was really a fantastic experience to meet you here. Badhaaee
ReplyDeleteAtul Kanak
नाप लेते हैं
ReplyDeleteशब्द
अरबों-खरबों
मीलो की दूरियां
पाट देते हैं
मन की
गहरी खुदी खाइयां।-sahi kha aapne.shabd ki achhi vyakhya ki hai aapne.