Friday, December 30, 2011

लो, बीत चला है यह एक और साल!

लो, बीत चला है यह एक और साल! अनवरत चलती है समय की घड़ी। काल चक्र के पहियों पर किसका जोर! समय घड़ी के सूईयों पर नजर डालते हैं तो पाते हैं बीते ने बहुत कुछ दिया है तो हमसे बहुत कुछ लिया भी है।
कला की दीठ से बीत रहेे वर्ष की यादें संजोता हूं तो मन में गहरा अवसाद घर करता है। ख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन, जहांगीर सबावाला के बिछोह का गम इस वर्ष ने हमें दिया तो भारतीय रंगमंच की महान विभुतियां बादल सरकार, सत्यदेव दुबे, गुरूषरण सिंह के न रहने का गहरा खालीपन भी हमें दिया है। संगीत सुनते उसे गुनते इस साल के पुराने पन्ने टटोलता हूं तो भूपेन हजारिका, पं. भीमसेन जोषी, जगजीत सिंह, उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर, सुल्तान खां, मकबूल साबरी, अजीत राय, उस्ताद असद अली खां, गोपीजी भट्ट जैसी संगीत हस्तियों की जुदाई का दर्द भी उसमें दर्ज पाता हूं।

बहरहाल, पिछले साल कला के रूझानों में जबरदस्त परिवर्तन हुआ है। चित्रकला की दृष्टि से जहां अंतर्राष्ट्रीय मुहावरे के चलते संस्थापन कला के नये तेवर हमारे समक्ष उभरे हैं तो भारतीय संगीत-वादन सरहदों की सीमा लांघते और परिस्कृत हुआ है। रंगकर्म में परम्परा के साथ आधुनिकता के मेल ने नयी जमीन भी तैयार की है। संगीत नाटक अकादमी ने इस वर्ष सुप्रसिद्ध कला समीक्षक, कवि प्रयाग शुक्ल के संपादन में ‘संगना’ पत्रिका के जरिये संगीत, नृत्य और नाट्य कलाओं पर प्रकाषन की महत्ती पहल की तो वर्ष के आरंभ में ही नेषनल मोर्डन आर्ट गैलरी में हुए अनिष कपूर के स्कल्पचर प्रदर्षन ने विष्व कला जगत में खासी हलचल मचायी। विज्ञान और कला के नये षिल्पाकाष में अनिष कपूर अपने कलाकर्म में वृहद विष्व को ही जैसे रूपायित करते हैं।

राजस्थान में इस वर्ष कलाओं में परम्परा के जड़त्व को तोड़ते बहुत से स्तरों पर नयी राहों का सृजन हुआ है। रंगकर्म की ही बात करें तो सुप्रसिद्ध रंगकर्मी भारत रत्न भार्गव के निर्देषन में संगीत नाटक अकादेमी के सहयोग से नाट्प्रषिक्षण के साथ रवीन्द्र मंच में नाट्य विधा के नये तेवर देखने को मिले तो अषोक राही, रणजीत सिंह के निर्देषन में मंचित नाटकों ने भी दर्षक उपस्थिति के नये रिकॉर्ड बनाये। नृत्य की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण यह भी रहा कि देष की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली की अर्से बाद जयपुर में नृत्य वापसी हुई। अचल, चल थाट को कुषलता से बरतती प्रेरणा दर्षकों को अपनी प्रस्तुति से बांधती है। विभिन्न तोड़े टूकड़े उठाती वह विलम्बित में छेड़छाड़ की गत की मोहक छटा बिखेरती है।

बहरहाल, गोपीजी भट्ट के निधन से तमाषा परम्परा के एक युग का अवसान हो गया है। ताउम्र फक्कड़ जीवन जिये गोपीजी। रियासतों में पली-बढ़ी उनकी कला के सम्मान की अड़ी भी किसे थी! सुखद पहलू यह जरूर रहा कि निधन से कुछ समय पहले ही पिंकसिटी प्रेस क्लब में उनका जयपुर की तमाम कला संस्थाओं ने मिलकर सार्वजनिक सम्मान किया। पहल की रंगकर्मी ईष्वरदत्त माथुर ने। नमन गोपीजी! नमन।

चित्रकला के अंतर्गत वर्षपर्यन्त मूर्त-अमूर्त कलाओं की प्रदर्षनियां का सिलसिला जारी रहा परन्तु कलानेरी कला दीर्घा का उल्लेख यहां जरूरी होगा। इसलिये कि कलाओं पर संवाद का नया आगाज इस निजी कलादीर्घा ने अपने तई किया। सुप्रसिद्ध कला समीक्षक विनोद भारद्वाज को आमंत्रित कर कलानेरी ने रजा और मकबूल फिदा हुसैन पर बनायी गयी लघु फिल्में दिखाने के साथ ही कलाओं की दीठ पर उनका संवाद भी करवाया। जवाहर कला केन्द्र लोकरंग जैसे वृहद आयोजन के साथ ही संगीत, नृत्य, नाट्य की नयी नयी प्रस्तुतियों से पूरे बरस ही आबाद रहा परन्तु राजस्थानी सिनेमा उत्सव का आयोजन इस साल की खास उपलब्धि कही जाएगी। राजस्थानी सिनेमा के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर इसमें जहां विमर्ष हुआ वहीं दर्षकों को राजस्थानी सिनेमा की बेहतरीन फिल्में भी देखने को मिली। साल बीतते बीतते राजस्थान ललित कला अकादेमी को भवानीषंकर शर्मा और संगीत नाटक अकादमी को अर्जुनदेव चारण के रूप मंे अध्यक्षीय सौगात भी मिल गयी। बातें, यादें और भी है। लिखूंगा तो शायद विराम ही न हो। सो थमता हूं।...आईए, स्वागतातुर हों नये साल की भोर को। नयी भोर में आखिर कलाएं ही देंगी हमें रचनात्मकता का उजास!


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