Saturday, July 11, 2020

संस्कृति, भूगोल, इतिहास और प्रकृति-प्रेम की रोचक गाथाएं सुनाती यात्राएं

मित्र ज्ञानेश उपाध्याय इस दौर के विरल संपादक, लेखक हैं। 'नर्मदे हर' पर उन्होंने विस्तार से लिखा है। शिक्षा विभाग की लोकप्रिय पत्रिका  'शिविरा' के जुलाई 2020 अंक  में प्रकाशित उनकी यह दीठ आप मित्रों के लिए भी...



Friday, May 8, 2020

‘रामायण’ धारावाहिक की लोकप्रियता के मायने


दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किये गये धारावाहिक ‘रामायण’ ने हाल ही में दुनिया में सर्वाधिक देखे जाने वाले धारावाहिक के रूप में विश्व रिकॉर्ड बनाया है। दूरदर्शन चैनल के आधिकारिक अकाउंट से जारी एक ट्वीट में बताया गया कि दुनियाभर में रिकॉर्ड व्यूअरशिप के साथ रामायण 7.7 करोड़ दर्शकों के साथ दुनिया का सबसे ज्यादा देखा जाने वाला मनोरंजन शो बन गया। दर्शकों के मामले में इस धारावाहिक ने विश्वभर  में सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी शो ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ को भी पीछे छोड़ दिया। सवाल यह है कि यह कैसे संभव हुआ? 

इसमें कुछ योगदान कोरोना के चलते घरों में रहने की हमारी मजबूरी कही जा सकती है परन्तु अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि  दर्शक  संवेदना से लबरेज ऐसे धारावाहिक अभी भी अधिक पंसद करते हैं, जिन्हें बगैर किसी घालमेल के बनाया गया हो। जिनमें व्यावसायिक हितों की अपेक्षा मानवीय मूल्य केन्द्र में हो और जिनमें भव्यता के नाम पर दिव्यता को बिसराया नहीं गया हो। आज से कोई 33 साल पहले जब यह धारावाहिक दूरदर्शन  से प्रसारित हुआ तब भी यह इतना ही लोकप्रिय था। याद पड़ता है, यह उन दिनों की बात है जब 10 वीं में पढ़ता था और उन्हीं दिनों शिमला जाना हुआ था। रविवार के दिन की बात है, पर्यटक घूमना-फिरना छोड़ माल रोड़ पर उस एक दुकान पर ही लम्बी कतार में  खड़े हो गये थे, जिसमे टीवी से यह धारावाहिक प्रसारित हो रहा था । कह सकते हैं, उन दिनों लोगांे के पास विकल्प नहीं थे इसलिए यह धारावाहिक इतना लोकप्रिय हुआ होगा परन्तु इन दिनों तो ऐसी कोई स्थिति नहीं है। बहुत से चैनल हैं, चकाचौंध भरे धारावाहिकों के भी कम विकल्प नहीं है फिर भी सर्वाधिक दर्शक इसे  मिले हैं तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि अच्छेपन को हर कोई चाहता है। डरावने, आपराधिक मसलों के नाटकीय रूपान्तरण, नाग-नागिनों, सास-बहुओं आदि के बेसिरपैर की कथाओं के अंतहीन चलने वाले धारावाहिकों के प्रसारक चैनलों ने असल में इधर दर्शकों  की रूचियों को मोड़ा नहीं है बल्कि बाजार की ताकतों के चलते उन्हें नशीले  पदार्थों के सेवन की मानिंद अपना आदि बनाने का एक तरह से चक्रव्यूह रचा है। दर्शकों  को इस कदर असहाय भी किया है कि वे चाहकर भी उनके रचे जाल से इसलिए मुक्त नहीं हो पाते कि कथित ऐसे मनोरंजन धारावाहिकों में ऐसे पेच, दृष्य डाले जाते हैं  कि अगली कड़ी देखने की चरम उत्सुकता पैदा होती है। देखने वाला जानता है, जो कुछ वह आंखो से ग्रहण कर रहा है, उसमें सब कुछ बेसिरपैर का है परन्तु फिर भी इसलिए देखता है कि कहीं और अच्छा कुछ प्रसारित ही नहीं होता है।
व्यक्ति एकान्त तो चाहता है परन्तु अकेलापन उसे नहीं भाता। आपा-धापी नहीं हो, कहीं जाने की उतावली नहीं हो और इस बात की फिक्र नहीं हो कि सब भाग रहे हैं, मैं कहीं पीछे नहीं रह जाऊं तभी ठहरकर अपने भीतर झांकने का वक्त मिलता है। अनर्गल कुछ भी सहने से तब वह बचने का भी उपाय तलाशता  है। कोरोना में कुछ-कुछ ऐसा ही समय हरेक को मिला है। यह यदि नहीं मिलता तो संभव है, दूदर्शन  प्रसारित ‘रामायण’ भी विश्व रिकाॅर्ड नहीं बना पाता। पर अनचाहे ही सही, घरों में ठहर सोचने के इस वक्त से व्यक्ति में संस्कृति की जड़ों को परखने का अवकाश मिला है। और फिर यह बात भी सच है कि ‘रामायण’ ने भारतीय जन-मानस को सदा ही अपनी ओर आकृष्ट किया है। मुझे लगता है, रामानन्द सागर की बनायी ‘रामायण’ इसलिए भी अधिक चावी-ठावी बनी कि इसमें उन्होंने दर्शकों  को खींचने के लिए अपनी ओर से तामझाम में अनर्गल कुछ गढ़ा नहीं। वाल्मीकि, तुलसी और कंब की लिखी रामायण के तथ्यों से इतर, चाहे जो दिखाने का प्रयास नहीं किया।  बल्कि मूल के कारण ही दर्शकों के बहुत से भ्रमों का भी इस प्रसारण से निवारण हुआ। 
‘रामायण’ असल में भारतीय जीवन मूल्यों के गहरे तत्वों का अर्थाेद्घाटन है। रोचक, विस्मित करते इसके प्रसंग अद्भुत तो हैं पर कथा में जीवन जीने के हम-सबके भीतर संजोए अर्थ बसे हुए  हैं और इसी कारण इस कथा को जितनी बार देखें, सुनें और पढ़ें ऊब नहीं होती।  ‘रामायण’ भारतीय जन-मानस के आंतरिक मनोभाावों को ध्यान में रखते हुए सिरजी गयी है। मानव जीवन का अंतरसत्य  यहां है। कर्तव्य -अकर्तव्य , न्याय-अन्याय के मध्य विवेक के साथ कैसा आचरण होना चाहिए, यह कथा एक तरह से सिखाती है। दूरदर्शन   ने इसके प्रसारण से इस मिथक को भी तोड़ दिया कि सरकारी माध्यमों के प्रसारण उम्दा नहीं होते।
यह सच है, कोरोना काल ने बहुत से और मिथकों को भी तोड़ा है। इसमें सबसे बड़ा यह मिथक भी है जो सुनियोजित तरीके से गढ़ा गया है कि सरकारी क्षेत्र में काम नहीं होता। गौर करें, इस समय कोरोना से बचाव की पूरी बागडोर देशभर  में सरकारी क्षेत्र ने ही संभाल रखी है। बगैर किसी अतिरिक्त लाभ के विचार के चाहे वह पुलिस हो, प्रसाशन  हो, चिकित्सकीय सेवाएं हो या फिर सूचना एवं संचार की राजकीय सेवाएं। सदा पार्श्व  में रह कार्य करने वाली जनसम्पर्क सेवा ने इस दौरान तथ्यपरक सूचनाओं के प्रसार में अपना विरल योगदान दिया है, दे रही है। यह बात दिगर है कि इस सेवा के कार्य का श्रेय सदा ही अन्य सेवाओं के खाते में जाता है। पर सोचिए, कोई कहे-जंगल में मोर नाचा पर सवाल तो यही होगा ना कि, किसने देखा?
बहरहाल, ‘रामायण’ की लोकप्रियता के पार्श्व में  जाएंगे तो पाएंगे जन-मानस को यह इसलिए अधिक सुहाती है कि इसमें सामूहिक अवचेतन के अंतर्निहित  भारतीय संस्कारों की अभिव्यक्ति है। प्रकृति की मानवीय व्यंजना है। नैतिकता में यह कथा दरअसल आम आदमी में ईश्वरत्व  के वास का अनूठा उदाहरण है। भारतीय इतिहास पौराणिक कथाओं में ही प्रस्तुत हुआ है और यह कथाएं हर आम और खास के अंतर्मनों की ही एक तरह से व्यंजना है। ‘रामायण’ के राम इसीलिए पुरूषोतम यानी पुरूषों में सबसे उत्तम हैं कि वह जीवन पर्यन्त त्याग के साथ आदर्ष जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हालाकि बहुत से स्थानों पर अतिरंजना भी होती दिखती है परन्तु व्यक्ति के भावों को परिस्कृत करते मनुष्यता का विकास यह कथा करती है। राम की कथा इसलिए हमारी अपनी, हरेक को भाती हुई है कि वहां राम चमत्कार नहीं करते। मुनष्य की भांति रहते दुःख सहन करते हैं, जटिल से जटिल परिस्थितियों का सामना करते हुए संघर्ष करते हुए दुरूह स्थितियों को निंरतर अपने पुरूषार्थ से संभव करते चले जाते हैं। मर्यादा में रहते वह हर कार्य करते हैं, इसीलिए मर्यादा पुरूष कहाते हैं।..और आप देखिए, यह राम का ही चरित्र था जिसने गाॅंधीजी को इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने तमाम अपना जीवन उनके आदर्शों को ध्यान में रखते हुए ही जिया और अंत समय में भी ‘हे राम!’ को ही उच्चारित किया।
मुझे लगता है, हम-सब में कुछ-कुछ राम बसता है। इसीलिए तो जब कहीं कुछ बुरा होता है, कोई कुछ गलत करता है तो औचक मुंह से निकलता है, ‘राम निसरग्यो!’ माने इसके भीतर का राम चला गया है। बात ‘रामायण’ धारावाहिक की चल रही है और इसी संदर्भ में यह कहने में हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि जन-मानस को वह सुहाता है जो आदर्श की स्थापना करता है पर इसके लिए ठहरकर सोचने, देखने की घड़ी होनी चाहिए। कोरोना ने शायद यह घड़ी दर्शकों को प्रदान की है इसीलिए सास-बहु, नाग-नागिन, क्राईम अलर्ट, हाॅरर और फुहड़ हास्य धारावाहिकों और ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ जैसे कथित मनोरंजक कहे जाने वाले प्रसारणों को छोड़ दर्शकों ने रूढ़, बोदी कही जाने वाली कथा को भी निरंतर देखा और इसे सर्वाधिक पंसद किया। मुझे लगता है, यह वक्त मनोरंजन शब्द के वास्तविक अर्थों को समझने का भी है। मनोरंजन  माने वह जिससे मन रंजित हो। षडयंत्रों, डरावने, अश्लीलता  परोसने वाली कथाओं से मन रंजित नहीं होता बल्कि त्रासदियों, अपराधबोध और अंततः अवसाद से ही घिरता है। स्वस्थ मनोरंजन अंतर्मन संवेदनाओं को अर्थ प्रदान करने वाला, भीतर से संपन्न करने वाला होता है। ‘रामायण’ धारावाहिक की लोकप्रियता को क्या इसी अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए!
--'राष्ट्रदूत', 9 मई, 2020