Thursday, October 13, 2011

विज्ञान और तकनीक का शिल्पाकाश

अनिश कपूर अपने षिल्प में अस्तित्व से संबंधित गूढ़ता लिये कलाकार हैं। कला की उनकी यह गूढ़ता ऐसी है जिसमें जीवन में होने वाले तमाम प्रकार के परिवर्तनों और प्रतिक्रियाओं का दर्षाव है। भले वह जो बनाते हैं उनमें बहुत सा ऐसा जिसमें नगरीय आर्किटेक्ट की आवष्यकता से जुड़े आष्चर्य का लोक है परन्तु वहां तकनीक के कला रूपान्तरण की पूरी की पूरी एक विचार पद्धति को गहरे से अनुभूत किया जा सकता है। उसमें स्वय की उनकी कला दीठ और सृजनात्क षिल्प शैली है।
दिल्ली की नेषनल मोर्डन आर्ट गैलरी में उनके कलाकर्म से पहले पहल रू-ब-रू जब हुआ तो लगा यह षिल्प की वह दुनिया नहीं है, जिसे पहले देखता रहा हूं। रहस्य लोक में ले जाते बड़े-बड़े षिल्प। समय जैसे उनमें ध्वनित हो रहा है। और स्पष्ट कहंू तो अन्तराल का षिल्पाकाष। फाईबर, मोम, मैटल और तमाम दूसरी तरह की चीजों के मिश्रण से निर्मित उनकी आकृतियों में वैज्ञानिक बोध भी है। कला में विज्ञान और तकनीक के विकास की प्रतिध्वनि। ब्रिटेन का उनका ‘आर्क लोर मित्तल ओरबिट’ कभी खासा चर्चित रहा था। यांत्रिकता के समय की तमाम संवेदनाओं को जैसे वहां पिरोया हुआ है। यही क्यों, उनकी बेहद प्रसिद्ध कलाकृति ’क्लाउड गेट’ को ही लें। घेरदार स्टेनलेस स्टील के ढ़ांचे का क्लाउड गेट अपने ढ़ाचे में इमारत के साथ आकाष को जैसे समाहित करता है। याद पड़ता है, नेषनल मोर्डन आर्ट गैलरी में ही उनके तमाम दूसरे कार्यों से रू-ब-रू होते उनसे संवाद भी हुआ था। तब वह भारत मंे ही थे। संवाद से पहले कलाकृतियों से रू-ब-रू होते औचक यह भी लगा कि किसी फेंटेसी जगत में पहंुच गया हूं। टाईम मषीन की मानिंद शीषे के घेरे में आप प्रवेष करते हैं तो कितने ही और अक्स आपको अपने नजर आते हैं। ऐसे ही पिरामिड आकृतियों और उनके पास रंगों को देख उनके भारतीयपन को गहरे से अनुभूत किया जा सकता था। लाल, ब्ल्यू, पीले रंगों की ढे़री अलग से ध्यान खींच रही थी। उनके इस रूपक को देख अपने शहर बीकानेर में गणगौर पूजन की याद हो आयी। गीत गाते हुए गणगौर, ईषर, के मांडणों के लिये गुलाल की ढ़ेरियां से मुट्ठी भर गुला लेती लड़कियां, ऐसा करते जमीन पर छिटकती गुलाल। मुझे लगता है, अनिष कपूर के पिरामिड के पास गुलाल की रक्ताभ लाली का देसज ठाठ  उनकी भारतीयता की उत्सवधर्मिता है। हरे, पीले, नीले रंगों के बावजूद लाल रंग अनिष कपूर के षिल्प के केन्द्र में रहता है। संवाद हुआ तो कहने लगे, ‘यह पूर्णतः भारतीय रंग है। शरीर के आकर्षण का केन्द्र भी यही रंग है।’ सच ही तो है लाल जीवन संबंधों के साथ ही खतरे, भय को भी व्यक्त करता है। खून का रंग भी तो लाल ही है। कभी ‘रॉयल एकेडमी’ में अनिष कपूर का एक ऐसा ही इन्स्टालेषन खासा चर्चित रहा था। वह तोप से बारूद दागने, खून के रंगों में लथपथ टूकड़े टूकड़े हुए शरीर के चमड़ों के लोथड़ों का संस्थापन था। ऐसे ही उनकी एक कलाकृति में खून और पटरियों के संबंधों को की व्यंजना है। चर्चित षिल्प और भी हैं, ‘तारातंत्र’, ‘मार्सयस’, ‘‘टीजवेली’, ‘स्वयंभ’, ‘मेमरी’ और भी परन्तु तमाम में मानव जीवन और जीवन से जुड़े सरोकार हैं।
अनिष विष्वभर में अपने वृहद स्कल्पचर के लिये जाने जाते हैं। स्कल्पचर की विविधता, विषालता के लिये भी। विष्व की तमाम कला छवियों को उनकी कला में अनुभूत किया जा सकता है। जीवन के रहस्य जगत को पकड़ते हुए वह विज्ञान और तकनीक का अपने तई कला पुनराविष्कार करते हैं। कला का अनूठा आष्चर्यलोक अनिष के कलाकर्म में है। संवाद हुआ तो कहने लगे, ‘कला वृहद विष्व का विषय है। मैं आधुनिक कलाकार हूं परन्तु परम्परावादी भी हूं। मूलतः मैं भारतीय हूं परन्तु मुझे यह कहने में कतई कोई शकोच नहीं है कि सौन्दर्य की कोई सीमा नहीं होती। इसे किसी राष्ट्रीयता के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए।’
सच ही तो है। कला में विचारों की उनकी लय में तमाम विष्व के सरोकार हैं। एक अनूठी पारदर्षिता भी वहां है। ऐसी जिसमें सृजन की बारीकियां है और है विज्ञान और तकनीक के विकास की कला संगतता।

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