Friday, October 1, 2010

अनुभव, चिंतन और तकनीक का नया आकाश

कला का इधर जो नया रूप सामने आ रहा है वह अतिशय उत्तेजक, बहुआयामी प्रक्रिया लिए हुए कलाकारो ंके अनुभव और चिन्तन को नया रूप दे रहा है। यह न्यू मीडिया आर्ट है। इसमें डिजिटल इमेेजेज हैं, विडियो है, साउंड है और बहुत सा आभासी यानी वर्चुअल भी है। सारनाथ बैनर्जी, सोनल जैन, अतुल डोडिया, विभा गेहरोत्रा, रनबीर, किरण सुबैया, साईना आनंद जैसे कलाकार इस दिशा में बहुत अच्छा कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो तकनीक के जरिए कलाकार का दर्जा पाने में लगे हैं।

ललित कला अकादेमी के अध्यक्ष और ख्यात कवि, आलोचक अशोक वाजपेयी की पहल पर पिछले दिनों चंडीगढ़ में ‘नेशनल आर्ट वीक आॅफ न्यू मीडिया’ मंे भाग लेते लगा जैसे कला की नयी दुनिया मंे प्रवेश कर गया हूं। इसमें रचनात्मकता तो है परन्तु तकनीक हर ओर, हर छोर जैसे हावी है। अंतिम दिन विमर्श में न्यू मीडिया आर्ट की चर्चित कलाकार विभा गेहरोत्रा, समकालीन कला के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर, कला दीर्घा के सम्पादक डॉ. अवधेश मिश्र, अंग्रेजी कला पत्रिका ‘आर्ट एंड डील’ के सम्पादक राहुल भट्टाचार्य के साथ इस कला के विभिन्न पक्षों पर विषद् विमर्श हुआ। राहुल और विभा ने न्यू मीडिया आॅफ आर्ट की समकालीनता पर अपनी दृष्टि दी तो खाकसार ने स्पष्ट किया कि कला के साथ तकनीक और विज्ञान का मेल तो हो सकता है परन्तु इस मेल में ही यदि कोई कला की आधुनिकता की तलाश करता है तो यह सही नहीं है। इसलिए कि कला वस्तु मात्र नहीं है और ऐसा जब नहीं है तो उसकी व्याख्या भी वस्तु की तरह नहीं की जा सकती। विज्ञान और तकनीक कला को एक आधार दे सकती है बशर्ते कि उसमें रचनात्मक सौन्दर्य की मानवीय दृष्टि निहित हो। अवधेश ने कला में आधुनिकता के नाम पर भयावह प्रयोगों की सिहरन का अहसास कराते कहा कि यही न्यू मीडिया कला है तो उसकी फिर कोई सार्थकता नहीं है।

ललित कला अकादेमी की यह सर्वथा नयी पहल थी। चंडीगढ़ ललित कला अकादमी के अध्यक्ष और जाने-माने छायाकार दिवान मना के प्रयासों से ‘न्यू मीडिया आर्ट’ पर भारत में संभवतः पहली बार इस प्रकार का राष्ट्रीय आयोजन हो सका। आम तौर पर कला संबंधी इस प्रकार के आयोजनों में दर्शकों, श्रोताओं की अधिक रूचि नहीं होती परन्तु चंडीगढ़ में समयबद्ध सारे कार्यक्रमों में प्रेक्षागृह खचाखच भरा रहा। विमर्श से एक दिन पहले अल्का पांडे ने न्यू मीडिया आर्ट से संबंधित कलाकारों के साथ ही इस कला के भविष्य पर स्लाईड शो के जरिए कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला। भारत में तेजी से न्यू मीडिया आर्ट के तहत हो रहे कार्य की चर्चा के साथ ही अल्का की साफगोई भी भाई। उन्हांेने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि न्यू मीडिया से बहुत अधिक उनका नाता नहीं है, इसीलिए जब इस पर बोलने का निमंत्रण मिला तो सबसे पहले उनकी बेटी ने ही उन्हें टोका था परन्तु अपने क्यूरेटर अनुभवों के साथ ही अध्ययन के आधार पर उन्होंने जो बोला उससे न्यू मीडिया के संबंध में बहुत कुछ समझा जा सकता था। वैसे भी यह वैश्विकरण का दौर है, चीजें तेजी से बदली रही है। तकनीक भी हर रोज बदल जाती है, ऐसे में आर्ट में न्यू मीडिया का प्रयोग स्वाभाविक ही है। आष्ट्रीया मे इस संबंध में बेहद महत्वपूर्ण काम हो रहा है। आष्ट्रीय काउन्सिल के अनुसार न्यू मीडिया आर्ट वह है जिसमें कलाकार नवीन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इस प्रकार का कार्य सृजित करता है जिससे उसकी कला का नया कलात्मक संप्रेषण हो। इस नवीन तकनीक में कलाकार की ब्रश और कूची कम्प्यूटर, सूचना प्रौद्योगिकी, इन्स्टालेशन और ध्वनि की अधुनातन तकनीक है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी जोड़ा जा सकता है कि कला सत्य या यथार्थ नहीं बल्कि उसकी खोज की एक प्रकार से प्रस्तावना है। इस प्रस्तावना में न्यू मीडिया आर्ट में भी संभावनाओं का अनंत आकाश है।

ललित कला अकादेमी ने इधर कला आयोजनों की जो स्वस्थ परम्परा विकसित की है, उसमें इस पहल का इसलिए भी स्वागत किया जाना चाहिए कि नई पीढ़ी सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की है। स्वाभविक ही है कि कला में भी आने वाले कल में अब उसकी कूची और ब्रश न्यू मीडिया ही होगा। लौटते वक्त दिल्ली में कला आलोचक विनयकुमार मिले तो कहने लगे, ‘न्यू मीडिया आर्ट पर जब देश में बड़े स्तर पर काम हो रहा है तो इस पर विमर्श की भी तो नई राहें खुलनी ही चाहिए, ललित कला अकादमी ने यही किया है।’

बहरहाल, तकनीक का उपयोग कलाकार अपनी अंतःदृष्टि के अंतर्गत रचनात्मक ऊर्जा को नया रूप देने के लिए करता है तब तो ठीक है परन्तु केवल प्रयोग के लिए, चमत्कृत करने के लिए ही ऐसे जतन होते हैं तो फिर उसमें कला की संभावनाओं को फिर तलाशा भी क्यंूकर जाए। तकनीक को भला कला का पर्याय कहा जा सकता है!

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